ऋषि कुमार नचिकेता की अमर जीवनी
Nachiketa Story In Hindi
आश्रम का वातावण हवन की सुगंध से भरा हुआ था। दूर दूर के ऋषि महात्माओंको यज्ञ करने के लिए बुलाया गया था। चारो और वेदमन्त्रोच्चारण की ध्वनि गूंज रही थी।
बहुत पुरानी बात है जब हमारे देश में वेदों का पठान या पाठन होता था। ऋषि आश्रमों में रहकर उनके शिष्यों को शिक्षा अथवा दीक्षा देते थे। उन दिनों एक महान महर्षि थे। उनका नाम बाजश्रव था। वे महान विद्वान और चरित्रवान थे। उनका एक पुत्र था जिसका नाम नचिकेता था। एक बार महर्षि ने "विश्वजीत" यज्ञ किया और उन्होंने एक प्रतिज्ञा की कि इस यज्ञ में वो अपनी सारी संपत्ति दान कर देंगे।
कई दिनों तक यज्ञ चलता रहा। यज्ञ की समाप्ति पर महर्षि ने अपनी सारी संपत्ति को यज्ञ करने वाले ऋषियों को दान में दे दिया। दान देकर महर्षि बहुत संतुष्ट हुए। बालक नचिकेता को गायो को दान में देने का यह निर्णय अच्छा नहीं लगा,क्यूंकि वे गायें दुबली और निर्बल थी। बालक नचिकेता का मानना था कि ऐसे दुर्बल गायों को दान में देने से कोई लाभ नहीं है। नचिकेता ने सोचा की पिताजी जरूर भूल कर रहे है। उनका पुत्र होने के नाते उन्हें ही इस भूल को सुधार न पड़ेगा।
नचिकेता पिताजी के पास गए और बोले "पिताजी अपने जिन वृद्ध गायो को दान में दिया है उनकी अवस्था ऐसी नहीं थी कि वो किसी और को दान में दी जाये।
महर्षि बोले पुत्र "पुत्र नचिकेता मैं ने यह प्रतिज्ञा की थी कि मैं इस यज्ञ में अपनी सारी संपत्ति दान कर दूंगा। गाये भी तो मेरी संपत्ति है। यदि मई गायनको दान न करता तो मेरा यज्ञ अधूरा रह जाता।
बालक नचिकेता ने कहा पिताजी "मेरे विचार में दान में वही वस्तु देनी चाहिए जो दुसरो के लिए उपयोगी हो तथा जो दूसरों के लिए काम में आ सके। तो बताईये मैं तो आपका पुत्र हूँ आप मुझे किसे दान करोगे।
महर्षि ने नचिकेता के किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया वे मौन हो गए। परन्तु नचिकेता ने बार बार वही प्रश्न दोहराया। महर्षि क्रोधित हो गए और बोले "मैं तुम्हे हमराज को दान कर दूंगा।
नचिकेता आज्ञाकारी बालक था। उसने निश्चय किया कि मुझे यमराज के पास जाकर अपने पिता के वचन को सत्य करना है। उसने सोचा की अगर वह ऐसा नहीं करेगा तो भरिष्य में मेरे पिताजी का कोई सम्मान नहीं करेगा।
नचिकेता ने अपने पिता से कहा "मई यमराज के पास जा रहा हूँ, अनुमति दीजिये। महर्षि असमंजस में पड़ गए। काफी सोच विचार करने के बाद अपने ह्रदय को कठोर करने के बाद नचिकेता को यमराज के पास जाने की आज्ञा दे दी।
नचिकेता यमलोक पहुँच गया पर यमराज वहां नहीं थे। यमराज के दूतो ने देखा की नचिकेता का जीवन काल अभी पूरा नहीं हुआ है। इसलिए उसकी और किसी ने ध्यान नहीं दिया किन्तु नचिकेता तीन दिनों तक यमलोक के द्धार पर बैठे रहा।
चौथे दिन जब यमराज ने बालक नचिकेता को द्धार पर देखा तो नचिकेता से उसका परिचय पूछा। निर्भय होकर बड़ी विनम्रता से अपना परिचय दिया और यह भी बताया की वह अपने पिताजी की आज्ञा से आया है।
यमराज ने सोचा की यह पितृ भक्त बालक हमारे यहाँ अतिथि है। यमराज मन ही मन सोचने लगे की मैंने और मेरे दूतों ने घर आये हुए अतिथि का स्वागत नहीं किया। उन्होंने नचिकेता से कहा....... है ऋषि कुमार तुम मेरे द्धार पर तीन दिनों तक भूखे प्यासे पड़े रहे, आप मुझसे तीन वर मंगलो।
नचिकेता ने यमराज को प्रणाम करते हुए कहा........ अगर आप मुझे वरदान देना चाहते है, तो पहला वरदान दीजिये की मेरे वापस जाने पर मेरे पिता मुझे पहचान ले और उनका क्रोध शांत हो जाये।
यमराज ने कहा....... तथास्तु कहा और दूसरा वरदान मांगने को कहा.......
नचिकेता ने सोचा पृथ्वी पर बहुत दुःख है। दुःख दूर करने का उपाय क्या हो सकता है ? इसलिए नचिकेता ने यमराज से दूसरा वरदान माँगा।
स्वर्ग मिलो किस रीती से, मुझको दो यह ज्ञान।
मानव के सुख के लिए, मांगू यह वरदान।।
यमराज ने बड़े परिश्रम से नचिकेता को वह विद्या सिखाई पृथ्वी पर दुःख दूर करने के लिए विस्तार में नचिकेता ने ज्ञान प्राप्त किया। बुद्धिमान बालक नचिकेता ने थोड़े ही समय में सब बातें सिखली। नचिकेता की एकाग्रता और सिद्धि देखकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने नचिकेता से वरदान मांगने को कहा।
नचिकेता ने कहा........
मृत्यु क्यों होती है ?
मृत्यु के बाद मनुष्य का क्या होता है ?
वह कहा जाता है ?
यह प्रश्न सुनते ही यमराज चौंक पड़ते है। उन्होंने कहा " बालक नचिकेता तुम और कुछ भी मंगलो पर मैं इस राज पर से पर्दा नहीं उठा सकता। इसके बदले में तुम कोई और प्रश्न पुछलो पर नचिकेता ने कहा........ अपने मुझे वरदान दिया है। ....... आपको मुझे इस रहश्य को बताना ही पड़ेगा।
नचिकेता की दृढ़ता और लगन को देखकर यमराज को झुकना पड़ा।
उन्होंने नचिकेता को बताया की मृत्यु क्या है। उसका असली रूप क्या है ? यह विषय बहुत कठिन इसलिए यह पर समझाया नहीं जा सकता। किन्तु कहा जा सकता है कि जिसने पाप किया नहीं किया, दुसरो को पीड़ा नहीं पहुंचाई, जो सच्चाई की रह पर चला उसे मृत्यु की पीड़ा नहीं होती। कोई कष्ट नहीं होता है। इस प्रकार छोटी उम्र में ही अपनी पितृ भक्ति का प्रमाण दिया है।
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